________________ // 10 // // 12 // // 13 // // 14 // // 15 // अध्यात्मशास्त्रसंभूतसंतोषसुखशालिनः / गणयन्ति न राजानं न श्रीदं नापि वासवम् यः किलाशिक्षिताध्यात्मशास्त्रः पाण्डित्यमिच्छति / उत्क्षिपत्यङ्गुली पशुः स स्व फललिप्सया दम्भपर्वतदम्भोलि: सौहार्दाम्बुधिचन्द्रमाः / अध्यात्मशास्त्रमुत्तालमोहजालवनानलः अध्वा धर्मस्य सुस्थ: स्यात्पापचौरः पलायते / अध्यात्मशास्त्रसौराज्ये न स्यात्कश्चिदुपप्लवः येषामध्यात्मशास्त्रार्थतत्त्वं परिणतं हृदि / कषायविषयावेशक्लेशस्तेषां न कर्हिचित् निर्दयः कामचण्डालः पण्डितानपि पीडयेत् / यदि नाध्यात्मशास्त्रार्थबोधयोधकृपा भवेत् विषवल्लिसमां तृष्णां वर्धमानां मनोवने / अध्यात्मशास्त्रदात्रेण छिन्दन्ति परमर्षयः वने वेश्म धनं दौस्थ्ये तेजो ध्वान्ते जलं मरौ / दुरापमाप्यते धन्यैः कलावध्यात्मवाङ्मयम् वेदान्यशास्त्रवित् क्लेशं रसमध्यात्मशास्त्रवित् / भाग्यभृद्भोगमाप्नोति क्हते चन्दनं खरः भुजास्फालनहस्तास्यविकाराभिनयाः परे। अध्यात्मशास्त्रविज्ञास्तु वदन्त्यविकृतेक्षणाः अध्यात्मशास्त्रहेमाद्रिमथितादागमोदधेः / भूयांसि गुणरत्नानि प्राप्यन्ते विबुधैर्न किम् रसो भोगावधि: कामे सद्भक्ष्ये भोजनावधिः / अध्यात्मशास्त्रसेवायां रसो निरवधिः पुनः // 16 // 17 // // 18 // // 19 // // 20 // // 21 //