________________ // 48 // // 49 // // 50 // // 51 // // 52 // // 53 // प्रत्यक्षं मितिमात्रंशे मेयांशे तद्विलक्षणम् / गुरुर्ज्ञानं वदन्नेकं नानेकान्तं प्रतिक्षिपेत् / जातिव्यक्त्यात्मकं घस्तु वदन्ननुभवोचितम् / भट्टो वापि मुरारिर्वा नानेकान्तं प्रतिक्षिपेत् अबद्धं परमार्थेन बद्धं च व्यवहारतः / ब्रुवाणो ब्रह्मवेदान्ती नानेकान्तं प्रतिक्षिपेत् ब्रुवाणा भिन्नभिन्नार्थान्नयभेदव्यपेक्षया / प्रतिक्षिपेयु! वेदाः स्याद्वादं सार्वतान्त्रिकम् विमतिः संमतिर्वापि चार्वाकस्य न मृग्यते / परलोकात्ममोक्षेषु यस्य मुह्यति शेमुषी तेनानेकान्तसूत्रं यद्यद्वा सूत्रं नयात्मकम् / . तदेव तापशुद्धं स्यान्न तु दुर्नयसंज्ञितम् नित्यैकान्ते न हिंसादि तत्पर्यायापरिक्षयात् / . मन:संयोगनाशादौ व्यापारानुपलम्भतः . बुद्धिलेपोऽपि को नित्यनिर्लेपात्मव्यवस्थितौ / सामानाधिकरण्येन बन्धमोक्षौ हि संगतौ अनित्यैकान्तपक्षेऽपि हिंसादिकमसंगतम् / * स्वतो विनाशशीलानां क्षणानां नाशकोऽस्तु कः आनन्तर्य क्षणानां तु न हिंसादिनियामकम् / विशेषादर्शनात्तस्य बुद्धलुब्धकयोमिथः संक्लेशेन विशेषश्चेदानन्तर्यमपार्थकम् / न हि तेनापि संक्लिष्टमध्ये भेदो विधीयते मनोवाक्काययोगानां भेदादेवं क्रियाभिदा / समग्रैव विशीर्येतेत्येतदन्यत्र चर्चितम् - 255 // 54 // // 55 // // 56 // // 57 // // 58 // // 59 //