________________ वस्तुतस्तु गुणैः पूर्णमनन्तैर्भासते स्वतः / रूपं त्यक्तात्मनः साधोर्निरभ्रस्य विधोरिव / // 8 // * // 2 // // 3 // 9 क्रियाऽष्टकम् ज्ञानी क्रियापरः शान्तो, भावितात्मा जितेन्द्रियः / स्वयं तीर्णो भवाम्भोधेः, परांस्तारयितुं क्षमः क्रियाविरहितं हन्त, ज्ञानमात्रमनर्थकम् / . गति विना पथज्ञोऽपि, नाप्नोति पुरमीप्सितम् स्वानुकूलां क्रियां काले, ज्ञानपूर्णोऽप्यपेक्षते / प्रदीप: स्वप्रकाशोऽपि तैलपूर्त्यादिकं यथा बाह्यभावं पुरस्कृत्य, ये क्रियां व्यवहारतः / वदने कवलक्षेपं, विना ते तृप्तिकाङ्क्षिणः गुणवबहुमानादे-नित्यस्मृत्या च सत्क्रिया / जातं न पातयेद्भावमजातं जनयेदपि क्षायोपशमिके भावे, या क्रिया क्रियते तया / पतितस्यापि तद्भावप्रवृद्धिर्जायते पुनः गुणवृद्ध्यै ततः कुर्यात्, क्रियामस्खलनाय वा / एकं तु संयमस्थानं, जिनानामवतिष्ठते वचोऽनुष्ठानतोऽसङ्गक्रिया सङ्गतिमङ्गति / सेयं ज्ञानक्रियाभेदभूमिरानन्दपिच्छला // 4 // // 5 // // 6 // // 7 // // 8 // 10 तृप्त्यष्टकम् पीत्वा ज्ञानाऽमृतं भुक्त्वा, क्रियासुरलताफलम् / साम्यताम्बूलमास्वाद्य, तृप्ति याति परां मुनिः 230