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________________ // 3 // भिक्षुद्वात्रिंशिका // 27 // नित्यं चेतः समाधाय यो निष्क्रम्य गुरूदिते / प्रत्यापिबति नो वान्तमवशः कुटिलभ्रुवाम् पृथिव्यादींश्च षट्कायान् सुखेच्छूनसुखद्विषः / गणयित्वात्मतुल्यान् यो महाव्रतरतो भवेत् // 2 // औद्देशिकं न भुञ्जीत त्रसस्थावरघातजम् / बुद्धोक्तध्रुवयोगी यः कषायांश्चतुरो वमेत् निर्जातरूपरजतो गृहियोगं च वर्जयेत् / . सम्यग्दृष्टिः सदाऽमूढस्तथा संयमबुद्धिषु // 4 // न यश्चागामिनेऽर्थाय सन्निधत्तेऽशनादिकम् / साधर्मिकान्निमन्त्र्यैव भुक्त्वा स्वाध्यायकृच्च यः // 5 // न कुप्यति कथायां यो नाप्युच्चैः कलहायते / उचितेऽनादरो यस्य नादरोऽनुचितेऽपि च // 6 // आक्रोशादीन्महात्मा यः सहते ग्रामकण्टकान् / न बिभेति भयेभ्यश्च स्मशाने प्रतिमास्थितः आक्रुष्टो वा हतो वापि लूषितो वा क्षमासमः / व्युत्सृष्टत्यक्तदेहो योऽनिदानश्चाकुतूहल: यश्च निर्ममभावेन काये दोषैरुपप्लुते / जानाति पुद्गलान्यस्य न मे किञ्चिदुपप्लुतम् // 9 // तथाहि मिथिलानाथो मुमुक्षुर्निर्ममः पुरा / बभाण मिथिलादाहे न मे किञ्चन दह्यते // 10 // हस्तेन चाघ्रिणा वाचा संयतो विजितेन्द्रियः / अध्यात्मध्याननिरतः सूत्रार्थं यश्च चिन्तयेत् . // 11 // // 7 // // 8 // 204
SR No.004454
Book TitleShastra Sandesh Mala Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2005
Total Pages306
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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