________________ // 15 // // 16 // // 17 // // 18 // // 19 // // 20 // धर्मशक्तिं न हन्त्यस्यां भोगशक्तिर्बलीयसीम् / हन्ति दीपापहो वायुर्व्वलन्तं न दवानलम् / मीमांसा दीपिका चास्यां मोहध्वान्तविनाशिनी / / तत्त्वालोकेन तेन स्यान्न कदाप्यसमञ्जसम् ध्यानसारा प्रभा तत्त्वप्रतिपत्तियुता रुजा / वर्जिता च विनिर्दिष्टा सत्प्रवृत्तिपदावहा चित्तस्य धारणादेशे प्रत्ययस्यैकतानता / ध्यानं ततः सुखं सारमात्मायत्तं प्रवर्तते सर्वं परवशं दुःखं सर्वमात्मवशं सुखम् / एतदुक्तं समासेन लक्षणं सुखदुःखयोः ध्यानं च विमले बौधे सदैव हि महात्मनाम् / सदा प्रसृमरोऽनभ्रे प्रकाशो गगने विधोः सत्प्रवृत्तिपदं चेहासङ्गानुष्ठानसंज्ञितम् / संस्कारतः स्वरसतः प्रवृत्त्या मोक्षकारणम् प्रशान्तवाहितासंज्ञं विसभागपरिक्षयः / / शिववर्त्म ध्रुवाध्वेति योगिभिर्गीयते ह्यदः प्रशान्तवाहिता वृत्तेः संस्कारात् स्यान्निरोधजात् / / प्रादुर्भावतिरोभावौ तद्व्युत्थानजयोरयम् .. सर्वार्थतैकाग्रतयोः समाधिस्तु क्षयोदयौ / / तुल्यावेकाग्रता शान्तोदितौ च प्रत्ययाविह अस्यां व्यवस्थितो योगी त्रयं निष्पादयत्यदः / ततश्चेयं विनिर्दिष्टा सत्प्रवृत्तिपदावहा समाधिनिष्ठा तु परा तदासङ्गविवर्जिता / सात्मीकृतप्रवृत्तिश्च तदुत्तीर्णाशयेति च 190 // 21 // // 22 // // 23 // // 24 // // 25 // // 26 //