________________ // 24 // // 25 // // 27 // आद्यावञ्चकयोगाप्त्या तदन्यद्वयलाभिनः / . एतेऽधिकारिणो योगप्रयोगस्येति तद्विदः यमाश्चतुर्विधा इच्छाप्रवृत्तिस्थैर्यसिद्धयः / योगक्रियाफलाख्यं च स्मर्यतेऽवञ्चकत्रयम् इच्छायमो यमेष्विच्छा युता तद्वत्कथामुदा / स प्रवृत्तियमो यत्तत्पालनं शमसंयुतम् सत्क्षयोपशमोत्कर्षादतिचारादिचिन्तया / रहिता यमसेवा तु तृतीयो यम उच्यते / परार्थसाधिका त्वेषा सिद्धिः शुद्धान्तरात्मनः / अचिन्त्यशक्तियोगेन चतुर्थो यम उच्यते सद्भिः कल्याणसंपन्नैर्दर्शनादपि पावनैः / तथादर्शनतो योग आद्यावञ्चक उच्यते / तेषामेव प्रणामादिक्रियानियम इत्यलम् / क्रियावञ्चकयोगः स्यान्महापापक्षयोदयः फलावञ्चकयोगस्तु सद्भ्य एव नियोगतः / सानुबन्धफलावाप्तिर्धर्मसिद्धौ सतां मता इत्थं योगविवेकस्य विज्ञानाद्धीनकल्मषः / यतमाना यथाशक्ति परमानन्दमश्नुते // 28 // // 29 // // 30 // / // 31 // // 32 // योगावतारद्वात्रिंशिका // 20 // संप्रज्ञातोऽपरश्चेति द्विधाऽन्यैरयमिष्यते / सम्यक् प्रज्ञायते येन संप्रज्ञातः स उच्यते // 1 // वितर्केण विचारेणानन्देनास्मितयान्वितः / भाव्यस्य भावनाभेदात्संप्रज्ञातश्चतुर्विधः - // 2 // 184