________________ इत्थं ह्यस्पष्टता शाब्दे प्रोक्ता तत्र विचारणम् / माध्यस्थ्यनीतितो युक्तं व्यासोऽपि यददो जगौ // 27 // आषं धर्मोपदेशं च वेदशास्त्राविरोधिना / यस्तर्केणानुसन्धत्ते स धर्मं वेद नेतरः // 28 // शास्त्रादौ चरणं सम्यक् स्याद्वादन्यायसंगतम् / . ईशस्यानुग्रहस्तस्माद् दृष्टेष्टार्थाविरोधिनः // 29 // यद्दातव्यं जिनैः सर्वैर्दत्तमेव तदेकदा / दर्शनज्ञानचारित्रमयो मोक्षपथः सताम् // 30 // जिनेभ्यो याचमानोऽन्यं लब्धं धर्ममपालयन् / तं विह्वलो विना भाग्यं केन मूल्येन लप्स्यते // 31 // अनुष्ठानं ततः स्वामिगुणरागपुरःसरम् / परमानन्दतः कार्यं मन्यमानैरनुग्रहम्' दैवपुरुषकारद्वात्रिंशिका // 17 // दैवं पुरुषकारश्च तुल्यौ द्वावपि तत्त्वतः / . निश्चयव्यवहाराभ्यामत्र कुर्मो विचारणाम् // 1 // दैवं पुरुषकारश्च स्वकर्मोद्यमसंज्ञकौ / निश्चयेनानयोः सिद्धिरन्योऽन्यनिरपेक्षयोः // 2 // सापेक्षमसमर्थं हीत्यतो यद्व्यापृतं यदा / तदा तदेव हेतुः स्यादन्यत्सदपि नादृतम् // 3 // विशिष्य कार्यहेतुत्वं द्वयोरित्यनपेक्षयोः / अवय॑सन्निधि त्वन्यदन्यथासिद्धिमञ्चति // 4 // अन्वयव्यतिरेकाभ्यां व्यवहारस्तु मन्यते / / द्वयोः सर्वत्र हेतुत्वं गौणमुख्यत्वशालिनोः लिनो. . // 5 // 196