________________ // 72 // // 73 // // 74 // // 75 // // 76 // // 77 // ण य एवं अण्णेसिं बझं पि न हंदि तेण तत्तुलं / उत्तमसंगविसेसा तणं हि कणगं सुरगिरिम्मि णाऊणं इमं सम्मं आणाजोगे पवट्टए मइमं / तिव्वाभिग्गहधारी रक्खंतो ते सुपरिसुद्धे विसयम्मि अपत्ते वि हु णियसत्तिप्फोरणेण फलसिद्धी। सेट्ठिदुगस्साहरणं भावेयव्वं इहं सम्म एएहितो पावं लोगे बहुअं वि पडिहयं होइ। गरलं गुरुअविआरं जह कयमंताइपडियारं तब्बंधठिई जाया कसायओ सा अवेइ सुहजोगे। सो पुण एत्थं गुरुओ आणासहगारिअत्तेण इय पासइ सज्जक्खो सम्मट्ठिी उ जोगबुद्धीए। अंधो णेव कुदिट्ठी अभिन्नगंठी य जच्चंधो एसुवएसो फलवं गुणठाणारंभतिव्वयाजोगे। न ठिएसु जहा दंडो चक्कम्मि सयं भमंतम्मि ण य एवं वभियारो कज्जविसेसा जहेव दंडस्स। दारघडियरूवेणं अहवाहिगयत्थहेउत्ता नणु एवं सुत्तत्थग्गहणुवएसो विरुज्झए सुत्ते / भन्नइ ण सो विरुज्झइ नमपत्तविसेसफलविसओ गुणठाणावावारे एत्तो विरओ अविरओ णियमा / ‘जह दहणो अदहंतो सत्तीए दाहगो चेव . तम्हा वयपरिणामे पवट्टए नाणदंसणसमग्गो। उवउत्तो परिणामे अप्पबहुत्तं वियालंतो पुरि दुच्चिन्नाणं कम्माणं अक्खएण णो मुक्खो। . तेण खमइ उवसग्गे पडिआरं वा कुणइ विहिणा // 78 // // 79 // // 80 // // 81 // // 82 // // 83 //