________________ // 42 // // 43 // // 44 // // 45 // / / 46 // // 47 // वेदनापि न मूर्त्तत्वनिमित्ता स्फुटमात्मनः / .. पुद्गलानां तदापत्तेः किं त्वशुद्धस्वशक्तिज़ा अक्षद्वारा यथा ज्ञानं स्वयं परिणमत्ययम् / तथेष्टानिष्टविषयस्पर्शद्वारेण वेदनाम् विपाककालं प्राप्यासौ वेदनापरिणामभाक् / मूर्त निमित्तमात्रं नो घटे दण्डवदन्वयि ज्ञानाख्या चेतना बोधः कर्माख्या द्विष्टरक्तता / जन्तोः कर्मफलाख्या सा वेदना व्यपदिश्यते नात्मा तस्मादमूर्त्तत्वं चैतन्यं चातिवर्तते / अतो देहेन नैकत्वं तस्य मूर्तेन कर्हिचित् सन्निकृष्टान्मनोवाणीकर्मादेरपि पुद्गलात् / , विप्रकृष्टाद्धनादेश्च भाव्यैवं भिन्नतात्मनः पुद्गलानां गुणो मूर्तिरात्मा ज्ञानगुणः पुनः / पुद्गलेभ्यस्ततो भिन्नमात्मद्रव्यं जगुर्जिनाः धर्मस्य गतिहेतुत्वं गुणो ज्ञानं तथात्मनः / धर्मास्तिकायात्तद्भिन्नमात्मद्रव्यं जगुर्जिनाः अधर्मे स्थितिहेतुत्वं गुणो ज्ञानगुणोऽसुमान् / ततोऽधर्मास्तिकायान्यदात्मद्रव्यं जगुर्जिनाः अवगाहो गुणो व्योम्नो ज्ञानं खल्वात्मनो गुणः / व्योमास्तिकायात्तद्भिन्नमात्मद्रव्यं जगुजिनाः आत्मा ज्ञानगुणः सिद्धः समयो वर्तनागुणः / तद्भिन्नं समयद्रव्यादात्मद्रव्यं जगुजिनाः आत्मनस्तदजीवेभ्यो विभिन्नत्वं व्यवस्थितम् / . व्यक्तिभेदनयादेशादजीवत्वमपीष्यते // 48 // .. // 49 // // 50 // // 51 // // 52 // // 53 // 110