________________ // 24 // // 25 // // 26 // // 27 // = // 28 // = ज्ञानं क्रियाविहीनं न क्रिया वा ज्ञानवर्जिता / गुणप्रधानभावेन दशाभेदः किलैनयोः / ज्ञानिनां कर्मयोगेन चित्तशुद्धिमुपेयुषाम् / निरवद्यप्रवृत्तीनां ज्ञानयोगौचिती ततः अत एव हि सुश्राद्धाचरणस्पर्शनोत्तरम् / दुष्पालश्रमणाचारग्रहणं विहितं जिनैः एकोद्देशेन संवृत्तं कर्म यत्पौर्वभूमिकम् / दोषोच्छेदकरं तत्स्याद् ज्ञानयोगप्रवृद्धये अज्ञानिनां तु. यत्कर्म न ततश्चित्तशोधनम् / यागादेरतथाभावान् म्लेच्छादिकृतकर्मवत् न च तत्कर्मयोगेऽपि फलसंकल्पवर्जनात् / संन्यासो ब्रह्मबोधाद्वा सावद्यत्वात्स्वरूपतः नो चेदित्थं भवेच्छुद्धि!हिंसादेरपि स्फुट / . श्येनाद्वा वेदविहिताद्विशेषानुपलक्षणात् . सावद्यकर्म नो तस्मादादेयं बुद्धिविप्लवात् / कर्मोदयागते त्वस्मिन्नसंकल्पादबन्धनम् कर्माप्याचरतो ज्ञातुर्मुक्तो भावो न हीयते / तत्र संकल्पजो बन्धो गीयते यत्परैरपि . कर्मण्यकर्म यः पश्येदकर्मणि च कर्म यः / स बुद्धिमान्मनुष्येषु स युक्तः कृत्स्नकर्मकृत् कर्मण्यकर्म वाऽकर्म कर्मण्यस्मिन्नुभे अपि / नोभे वा. भङ्गवैचित्र्यादकर्मण्यपि नो मते कर्म नैष्कर्म्य वैषम्यमुदासीनो विभावयन् / ज्ञानी न लिप्यते भोगैः पद्मपत्रमिवाम्भसा 3 = // 30 // // 31 // // 32 // // 33 // . // 34 // . // 35 //