________________ = // पितृभक्त्यष्टकम् // 25 // अतः प्रकर्षसंप्राप्ताद्विज्ञेयं फलमुत्तमम् / तीर्थकृत्त्वं सदौचित्यप्रवृत्त्या मोक्षसाधकम् // 193 // सदौचित्यप्रवृत्तिश्च गर्भादारभ्य तस्य यत् / तत्राप्यभिग्रहो न्याय्यः श्रूयते हि जगद्गुरोः ___ // 194 // पित्रुद्वेगनिरासाय महतां स्थितिसिद्धये / इष्टकार्यसमृद्ध्यर्थमेवंभूतो जिनागमे . // 195 // जीवतो गृहवासेऽस्मिन् यावन्मे पितराविमौ / तावदेवाधिवत्स्यामि गृहानहमपीष्टतः / इमौ शुश्रूषमाणस्य गृहानावसतो गुरू / प्रव्रज्याप्यानुपूर्येण न्याय्यान्ते मे भविष्यति // 197 // सर्वपापनिवृत्तिर्यत्. सर्वथैषा सतां मता / गुरूद्वेगकृताऽत्यन्तं नेयं न्याय्योपपद्यते // 198 // प्रारम्भमङ्गलं ह्यस्या गुरुशुश्रूषणं परम् / एतौ धर्मप्रवृत्तानां नृणां पूजास्पदं महत् // 199 // स कृतज्ञः पुमाँल्लोके स धर्मगुरुपूजकः / स शुद्धधर्मभाक् चैव य एतौ प्रतिपद्यते // 200 // %3 // महादानस्थापनाष्टकम् // 26 // जगद्गुरोर्महादानं संख्यावच्चेत्यसंगतम् / / शतानि त्रीणि कोटीनां सूत्रमित्यादि चोदितम् // 201 // अन्यैस्त्वसंख्यमन्येषां स्वतन्त्रेषूपवर्ण्यते / .. तत्तदेवेह तद्युक्तं महच्छब्दोपपत्तितः , // 202 // GO