________________ // 183 // कर्तव्या चोन्नतिः सत्यां शक्ताविह नियोगतः / अवन्ध्यबीजमेषा यत्तत्त्वतः सर्वसंपदाम् / अत उन्नतिमाप्नोति जातौ जातौ हितोदयाम् / क्षयं नयति मालिन्यं नियमात्सर्ववस्तुषु // 184 // . // पुण्यादिचतुर्भङ्ग्यष्टकम् // 24 // गेहाद्गेहान्तरं कश्चिच्छोभनादधिकं नरः / याति यद्वत्सुधर्मेण तद्वदेव भवाद्भवम् // 185 // गेहाद्गेहान्तरं कश्चिच्छोभनादितरन्नरः / याति यद्वदसद्धर्मात्तद्वदेव भवाद्भवम् // 186 // गेहाद्गेहान्तरं कश्चिदशुभादधिकं नरः / याति यद्वन्महापापात्तद्वदेव. भवाद्भवम् // 187 // गेहाद्गेहान्तरं कश्चिदशुभादितरन्नरः / याति यद्वत्सुधर्मेण तद्वदेव भवाद्भवम् // 188 // शुभानुबन्ध्यतः पुण्यं कर्तव्यं सर्वथा नरैः / यत्प्रभावादपातिन्यो जायन्ते सर्वसंपदः // 189 // सदागमविशुद्धेन क्रियते तच्च चेतसा / . एतच्च ज्ञानवृद्धेभ्यो जायते नान्यतः क्वचित् // 190 // चित्तरत्नमसंक्लिष्टमान्तरं धनमुच्यते / यस्य तन्मुषितं दोषैस्तस्य शिष्टा विपत्तयः // 191 // दया भूतेषु वैराग्यं विधिवद्गुरुपूजनम् / विशुद्धा शीलवृत्तिश्च पुण्यं पुण्यानुबन्ध्यदः // 192 // 87 (C . .