________________ // 139 // // 140 // // 141 // मां स भक्षयितामुत्र यस्य मांसमिहाम्यहम् / एतन्मांसस्य मांसत्वं प्रवदन्ति मनीषिणः इत्थं जन्मैव दोषोऽत्र न शास्त्राद् बाह्यभक्षणम् / प्रतीत्यैष निषेधश्च न्याय्यो वाक्यान्तराद् गतेः प्रोक्षितं भक्षयेन्मांसं ब्राह्मणानां च काम्यया / यथाविधि नियुक्तस्तु प्राणानामेव वात्यये अत्रैवासावदोषश्चेन्निवृत्तिर्नास्य सज्यते / अन्यदा भक्षणादत्राभक्षणे दोषकीर्तनात् यथाविधि नियुक्तस्तु यो मांसं नात्ति वै द्विजः / स प्रेत्य पशुतां याति संभवानेकविंशतिम् पारिवाज्यं निवृत्तिश्चेद्यस्तदप्रतिपत्तितः / फलाभावः स एवास्य दोषो निर्दोषतैव न // 142 // // 143 // / // 144 // - // मद्यपानदूषणाष्टकम् // 19 // मद्यं पुनः प्रमादाङ्गं तथा सच्चित्तनाशनम् / सन्धानदोषवत्तत्र न दोष इति साहसम् // 145 // कि चेह बहुनोक्तेन प्रत्यक्षेणैव दृश्यते / * दोषोऽस्य वर्तमानेऽपि तथा भण्डनलक्षणः // 146 // श्रूयते च ऋषिर्मद्यात्प्राप्तज्योतिर्महातपाः / / स्वर्गाङ्गनाभिराक्षिप्तो मूर्खवन्निधनं गतः // 147 // कश्चिदृषिस्तपस्तेपे भीत इन्द्रः सुरस्त्रियः / क्षोभायः प्रेषयामास तत्रागत्य च तास्तकम् // 148 // विनयेन समाराध्य वरदाभिमुखं स्थितम् / - जगुर्मद्यं तथा हिंसां सेवस्वाब्रह्म वेच्छया // 149 //