________________ // 97 // // 98 // // 99 // // यमाष्टकम् // 13 // विषयो धर्मवादस्य तत्तत्तन्त्रव्यपेक्षया / प्रस्तुतार्थोपयोग्येव धर्मसाधनलक्षण: पञ्चैतानि पवित्राणि सर्वेषां धर्मचारिणाम् / अहिंसा सत्यमस्तेयं त्यागो मैथुनवर्जनम् क्व खल्वेतानि युज्यन्ते मुख्यवृत्त्या क्व वा न हि / तन्त्रे तत्तन्त्रनीत्यैव विचार्यं तत्त्वतो ह्यदः धर्मार्थिभिः प्रमाणादेर्लक्षणं न तु युक्तिमत् / प्रयोजनाद्यभावेन तथा चाह महामतिः प्रसिद्धानि प्रमाणानि व्यवहारश्च तत्कृतः / प्रमाणलक्षणस्योक्तौ ज्ञायते न प्रयोजनम् . प्रमाणेन विनिश्चित्य तदुच्येत न वा ननु / अलक्षितात् कथं युक्ता न्यायतोऽस्य विनिश्चितिः सत्यां चास्यां तदुक्त्या किं तद्वद्विषयनिश्चितेः / / तत एवाविनिश्चित्य तस्योक्तिया॑न्ध्यमेव हि तस्माद्यथोदितं वस्तु विचार्यं रागवर्जितैः / धर्मार्थिभिः प्रयत्नेन तत इष्टार्थसिद्धितः . // 100 // // 101 // // 102 // // 103 // // 104 // // नित्यात्मवादनिराकरणाष्टकम् // 14 // तत्रात्मा नित्य एवेति येषामेकान्तदर्शनम् / हिंसादयः कथं तेषां युज्यन्ते मुख्यवृत्तितः // 105 // निष्कियोऽसौ ततो हन्ति हन्यते वा न जातुचित् / कंचित्केनचिदित्येवं न हिंसास्योपपद्यते // 106 // 81