________________ // 86 // यापि चानशनादिभ्यः कायपीडा मनाक् क्वचित् / व्याधिक्रियासमा सापि नेष्टसिद्ध्यात्र बाधनी . दृष्टा चेष्टार्थसंसिद्धौ कायपीडा ह्यदुःखदा / रत्नादिवणिगादीनां तद्वदत्रापि भाव्यताम् विशिष्टज्ञानसंवेगशमसारमतस्तपः / क्षायोपशमिकं ज्ञेयमव्याबाधसुखात्मकम् // 87 // // 88 // 89 // // 90 // // 91 // // वादाष्टकम् // 12 // शुष्कवादो विवादश्च धर्मवादस्तथापरः / इत्येष त्रिविधो वादः कीर्तितः परमर्षिभिः अत्यन्तमानिना सार्धं क्रूरचित्तेन च दृढम् / धर्मद्विष्टेन मूढेन शुष्कवादस्तपस्विनः विजयेऽस्यातिपातादि लाघवं तत्पराजयात् / धर्मस्येति द्विधाप्येष तत्त्वतोऽनर्थवर्धनः लब्धिख्यात्यर्थिना तु स्याहुःस्थितेनामहात्मना / छलजातिप्रधानो यः स विवाद इति स्मृतः विजयो ह्यत्र सन्नीत्या दुर्लभस्तत्त्ववादिनः / तद्भावेऽप्यन्तरायादिदोषो दृष्टविघातकृत् परलोकप्रधानेन मध्यस्थेन तु धीमता / स्वशास्त्रज्ञाततत्त्वेन धर्मवाद उदाहृतः विजयेऽस्य फलं धर्मप्रतिपत्त्याद्यनिन्दितम् / आत्मनो मोहनाशश्च नियमात्तत्पराजयात् देशाद्यपेक्षया चेह विज्ञाय गुरुलाघवम् / तीर्थकृज्ज्ञातमालोच्य वादः कार्यो विपश्चिता . // 92 // // 93 // // 94 // // 95 // // 96 //