________________ ॥श्रावकधर्मविधिः // नमिऊण वद्धमाणं, सावगधम्म समासओ वोच्छं / सम्मत्ताईभावत्थ-संगयं सुत्तणीईए // 1 // परलोगहियं सम्मं, जो जिणवयणं सुणेइ उवउत्तो / / अइतिव्वकम्मविगमा, सुक्कोसो सावगो एत्थ // 2 // अहिगारिणा खु धम्मो, कायव्वो अणहिगारिणो दोसो / आणाभंगाओ च्चिय, धम्मो आणाएँ पडिबद्धो // 3 // तत्थहिगारी अत्थी, समत्थओ जो ण सुत्तपडिकुट्ठो / अत्थी उ जो विणीओ, समुवट्ठिओ पुच्छमाणो य // 4 // होइ समत्थो धम्मं, कुणमाणो जो न बीहइ परेसिं / माइपिइसामिगुरुमा-इयाण धम्माणभिण्णाणं . // 5 // सुत्ताऽपडिकुट्ठो जो, उत्तमधम्माण लोगविक्खाए / गिहिधम्मं बहु मण्णइ, इहपरलोए विहिपरो य // 6 // उचियं सेवइ वित्ति, सा पुण नियकुलकमाऽऽगया सुद्धा / महाणखत्तियवइसा-ण सुद्धसुद्दाण नियनियगा एए पुण विण्णेया, लिंगेहिंतो परोवयारीहिं / ताई तु पंच पंच य, तिण्हं पि हवंति एयाई गिहिधम्मकहापीई, निंदाऽसवणं च तदणुकंपा य / सविसेसजाणणिच्छा, चित्तनिवेसो तहिं चेव गुरुविणओ तह काले, नियए चिइवदंणाइकरणं च / उचियाऽऽसण जुत्तसरो, सज्झाए सययमुवओगो // 10 // सव्वजणवल्लहत्तं, अगरहियं. कम्म वीरया वसणे / . जहसत्ती चागतवा, सुलद्धलक्खत्तणं धम्मे // 11 // // 7 // // 8 // // 9 //