________________ // 20 // सुखविंशिका // नमिऊण तिहुयणगुरुं परमाणंतसुहसंगयं पि सया / अविमुक्कसिद्धिविलयं च वीयरागं महावीरं // 366 // वुच्छं लेसुद्देसा सिद्धाण सुहं परं अणोवम्मं / नायागमजुत्तीहिं मज्झिमजणबोहणट्ठाए // 367 // जं सव्वसत्तु तह सव्ववाहि सव्वत्थ सव्वमिच्छाणं / खयविगमजोगपत्तीहिं होइ तत्तो अणंतमिणं // 368 // रागाईया सत्तू कम्मुदया वाहिणो इहं नेया / लद्धीओ परह(म)त्था इच्छाणिच्छेच्छमो य तहा // 369 // अणुहवसिद्ध एयं नारुग्गसुहं व रोगिणो नवरं / गम्मइ इयरेण तहा सम्ममिणं चिंतियव्वं तु . // 370 // सिद्धस्स सुक्खरासी सव्वद्धापिंडिओ जइ हविज्जा / सो गंतवग्गभइओ सव्वागासे ण माइज्जा - // 371 // वाबाहक्खयसंजायसुक्खलवभावमित्थमासज्ज / तत्तो अणंतरुत्तरबुद्धीए रासि परिकप्पो // 372 // एसो. पुणः सव्वो वि हु निरइसओ एगरूवमो चेव / / सव्वाबाहाकारणखयभावाओ तहा नेओ // 373 // न उ तह भिन्नाणं चिय सुक्खलवाणं तु एस समुदाओ / ते तह भिन्ना संतो खओवसम जाव में हुंति // 374 // न य तस्स इमो भावो न य सुक्खं पि हु परं तहा होइ / बहुविसलवसंविद्धं अमयं पि न केवलं अमयं // 375 // सव्वद्धासंपिंडणमणंतवग्गभयणं च जं इत्थ / सव्वागासपमाणं चणंतं तइंसणत्थं तु // 376 // 33