________________ // 16 // प्रायश्चितर्विशिका // पच्छित्ताओ सुद्धी तहभावालोयणेण जं होइ / इहरा ण पीढबंभाइओ सआ सुकडभावे वि // 286 // अहिगा तक्खयभावे पच्छित्तं किंफलं इहं होइ ? तदहिगकम्मक्खयभावओ तहा हंत मुक्खफलं // 287 // . पावं छिंदइ जम्हा पायच्छित्तं ति भण्णए तम्हा / पाएण वा वि चित्तं सोहयई तेण पच्छित्तं // 288 // संकेसणाइभेया चित्तअसुद्धीइ बज्झई पावं / / तिव्वं चित्तविवागं अवेइ तं चित्तसुद्धीओ // 289 // किच्चे वि कम्मणि तहा जोगसमत्तीइ भणियमेयं ति / .... आलोयणाइभेया दसविहमेयं जहा सुत्ते // 290 / / आलोयण पडिकमणे मीस विवेगे तहा विउस्सग्गे / तव छेय मूल अणवठ्ठया य पारंचियं चेव // 291 // वसहीओ हत्थसया बाहिं कज्जे गयस्स विहिपुव्वं / गमणाइगोयरा खलु भणिया आलोयणा गुरुणा // 292 // सहस च्चिय अस्समियाइभावगमणे य चरणपरिणामा / मिच्छादुक्कडदाणा तग्गमणं पुण पडिक्कमणं // 293 // सद्दाइएसु ईसि पि इत्थ रागाइभावओ होइ / आलोयणा पडिक्कमणयं च एयं तु मीसं तु // 294 // असणाइगस्स पायं अणेसणीयस्स कह वि गहियस्स / / संवरणे संचाओ एस विवेगो उ नायव्वो // 295 // कुस्सुमिणमाइएसुं विणाऽभिसंधीइ जो उ अइयारो / तस्स विसुद्धिनिमित्तं काउस्सग्गो विउस्सग्गो . . // 296 // 26