________________ धम्मकहाउज्जुत्तो भावनू परिणओ चरित्तम्मि / संवेगवुड्डिजणओ सम्मं सोमो पसंतो य // 274 / / एयारिसम्मि नियमा संविग्गेणं पमायदुच्चरियं / अपुणकरणुज्जुएणं पयासियव्वं जइजणेणं // 275 // जइ बालो जंपंतो कज्जमकज्जं च उज्जुयं भणइ / तं तह आलोइज्जा मायामयविप्पमुक्को य // 276 // पच्छित्तमयं करणा अन्ने सुद्धि भणंति नाणस्स / तं च न जम्मा एयं ससल्लवणरोहणप्पायं // 277 // अवराहा खलु सल्लं एयं मायाइभेयओ तिविहं / सव्वं पि गुरुसमीवे उद्धरियव्वं पयत्तेण // 278 // न य तं सत्थं व विसं व दुप्पउत्तु व्व कुणइ वेयालो / जंतं व दुप्पउत्तं सत्तुव्व पमाइओ कुद्धो // 279 // जं कुणइ भावसल्लं अणुद्धियं उत्तिमट्ठकालम्मि / दुलहबोहीयत्तं अणंतसंसारियत्तं च . // 280 // तो उद्धरंति गारवरहिया मूलं पुणब्भवलयाणं / मिच्छदसणसल्लं मायासल्लं नियाणं च // 281 // चरमपरिणामधम्मे दुच्चरियं अद्धिई दढं कुणइ / कह वि पमायावट्टिय. आव न आलोइयं गुरुणो // 282 // जं जाहे आवज्जइ दुच्चरियं तं तहेव जत्तेणं / आलोएयव्वं खलु सम्मं सइयारमरणभया // 283 / / एवमवि य पक्खाई जायइ आलोयणाओ विसओ त्ति / गुरुकज्जाणालोयणा भावाणाभोगओ चेव // 284 // जं जारिसेण भावेण सेवियं किं पि इत्थ दुच्चरियं / ' तं तत्तो अहिगेणं संवेगेणं तहाऽऽलोए . // 285 // . 25 .