________________ भुत्तयंतेहिं तओ सव्वेहिं वि हट्ठतुट्ठमणसेहिं / भणिया य खंडवाणा सुजीविअं जीविअं तुज्झ // 466 // जं ते बुद्धिबलाओ धुत्तजणो णिज्जिणित्तु सयराहं / संतप्पिओ खुहत्तो विउलेणं भत्तपाणेणं // 467 // सुस्सिक्खिआ वि पुरिसा ताई ण जाणंति जंपिअव्वाइं / जाइं असिक्खिआओ कत्तो वि लहंति महिलाओ // 468 // पढिऊण य सत्थाई पुरिसा णाऊण तेसिमत्थाई / ण समत्था पडिवयणे उप्पण्णमई जला महिला // 469 // अघीत्य शास्त्राणि विमृश्य चार्थान्न तानि वक्तुं पुरुषाः समर्थाः / यानि स्त्रियः प्रत्यभिधानकाले वदन्ति लिलारचिताक्षराणि।। 470 // चंदिंदुवाउसूरा अग्गी धम्मो अ लोयविक्खाया / लोएण दूमिया ते वम्हह-रइ-रागदोसेहि // 471 // सुव्वइ अ आगमम्मी जह कण्हो सव्वबीअमज्झगओ। सुहुमेसु बायरेसु अ तिलतुसमित्तेसु दव्वेसु // 472 // जइ सव्वगओ कण्हो चिंतिज्जइ जत्थ तत्थ सो चेव / चितितओ वि सु च्चिअ तम्हा सो किं विचिंतेइ // 473 // अण्णं पि अलिअवयणं सुव्वइ लोयम्मि णिग्गयं इणिमो / जह पवणगणाहिवई सेलसुआवयवउप्पण्णो // 474 // बंभाण समुप्पत्ती तिलुत्तमा उव्वसी य दोणस्स / / उप्पत्ति छम्मुहस्स य णरकुब्बर आसि ताणं च // 475 // कण्हस्स य णिग्गमणं जह कोवा सेअकुंडलीजाओ। जह सिरकवालमज्झे रुहिरम्मि णरो समुप्पण्णो // 476 // जइ जायवस्स माया उप्पत्ती हलहरस्स लोगम्मि। . जह जाया सेलसुआ विक्खाया जीवलोयम्मि 305 // 477 //