________________ जइ ते महंतरुक्खा तिरिक्खजोणीगएण हणुएण / उम्मूलिआ समुला तुह पुत्तो कि ण उक्खणइ . अइसइओ भणइ ससो खंडावाणीइ तत्थ धुत्तीए / खंडं भणइ इआणि कहेहि जं तं समणुभूअं // 359 // // 360 // पञ्चममाख्यानकम् : अह भणइ खंडवाणा विहसंती अत्थसत्थणिम्माया / बुद्धीइ अहिअबुद्धी धुत्ते तुल्लेउं वयणमिणं // 361 // . ओलग्गिअ त्ति अम्हेहि भणइ जइ अंजलिं करीअ सीसे / उवसप्पह जइ अ समं तो भत्तं देमि सव्वेसि // 362 // तो ते भणंति धुत्ता अहं सव्वं जगं तुलेमाणा / .: कह एव दीणवयणं तुज्झ सयासे भणीहामो // 363 // अवि उड्ढे चिअ फुटृति माणिणो ण वि सहति अवमाणं / . . अत्थमणम्मि वि रविणो किरणा उड्ढे चिअ फुरंति // 364 // पवणु च्चिअ आहारो वंकं चंकंमिश्र अपरिभूअं। .. सव्वजगुव्वेअकरं अहो सुजीअं भुअंगाणं // 365 // ईसि हसिऊण तो सा खंडावाणा भणेइ. भो सुणह / अक्खाणयं अणलियं जं अणुभूअं मए चेव // 366 // आसि अहं तरुणत्ते जुव्वणलायण्णवण्णगुणकलिया / रूवेण अणण्णसमा जणमणनयणूसवब्भूआ // 367 // . णवरि अ कयाइ अहयं उण्हाया मंडवे सुहपसुत्ता। . उवभुत्ता पवणेणं रूवगुणुम्मत्तहिअएणं // 368 // जाओ तेण सुओ मे ताहे च्चिय जायमित्तओं तो सो / आउच्छिऊण य ममं कत्तो वि गओ अह खणेणं. // 369 //