________________ तृतीयमाख्यानकम् अह भणइ एलसाढो अहयं तरुणतणे दविणबुद्धी / धाउव्वायपिसाएण भामिओ परिभमामि जगं . // 169 // इत्थ बिलं इत्थ रसो एसो सो पव्वओ जहिं धाऊ / एवं लक्खगएणं णडिज्जमाणो परिभमामि // 170 // लद्धो अ आगमो मे जह पुव्वदिसाइ जोअणसहस्से / णवरं गंतूण गिरि सहस्सवेही रसो तहियं // 171 // जोअणवित्थिण्णाए सिलाइं तं रसबिलं समुच्छण्णं / उक्खिविऊण सिलं सो चित्तव्वो कणयकुंडाओ // 172 // आसापासणिबद्धो जोअणसइएहिं तो कमेहिं अहं / गंतूण गिरिपएसे उक्खिविअ सिलं रसं गहिऊं // 173 // परिढक्किऊण य बिलं सिलाइ तो आगयं इमं भवणं / तो जाओ मे विभओ धणयसरिच्छो रसपसाया // 174 // अह पंणइणिपरिकिण्णो थुव्वंतों तह य मागहसएहि / वरतरुणिसंपउत्तेहिं णाडएहिं च गिज्जंतो // 175 // / अच्छामि विलसमाणो अच्छरसा परिगओ धणवइ व्व / तालायर-माहण-भिक्खुआण दाणं पयच्छामि // 176 // तो धणयविहवसरिसं णाऊण ममं विणिग्गयजसोहं / चोरा सामत्थेउं रत्तिं पडिआ मम गिहम्मि // 177 // सण्णद्धबद्धपढेहिं तेहिं गहिआउहप्पहारेहिं / कयसीहणायबोलेहिं वेढियं मज्झ वरभवणं // 178 // पर(रि ?)संचियस्स अत्थस्स कारणे मरणमागयं तेहिं / सभुअबलज्जिअमत्थं ण देमि हरिउं विचिंतेउं // 179 // 280.