________________ ता तेण तक्खणं चिअ मुक्कसिरा अप्पणो णिलाडम्मि। बंभाणसिरकवालं रुद्देण समुद्दिअं हिढे . // 77 // वाससहस्सेण वि तं ण भरिज्जइ तीइ रुहिरधाराए / तं रुहिरमंगुलीए पसुवइणा डोहिअं णवर // 7 // बंभाणसिरकवाले केसवरुहिरंगुलीइ रुद्दस्स / तो रत्तकुंडलिणरो तिण्हं संजोगओ जाओ // 79 // सो रुद्देणाणत्तो पजुज्झिओ सेअकुंडलीइ समं / जुझंताणं ताणं वाससहस्सं अइक्कंतं . . // 80 // तो गिव्हिऊण दुन्नि सव्वेहि वि सुरवरेहि मिलिएहि / दिण्णो सक्कस्स णरो सूरस्स समप्पिओ बीओ // 81 // भणिआ भारहकाले भारहजुज्झस्स कारणट्ठाए / ' भारहवयारकाले उवणिज्जह मणुअलोयम्मि / / 82 // तो काले संपत्ते सूरो कुंतीइ रूवउम्मत्तो / कयसंजोओ तीए कुच्छीइ जणेइ. तं गब्भं // 83 // सण्णद्धबद्धकवओ कुंतीकण्णेण णिग्गओ कण्णो / तो किं तुमं ण णीसरिसि कुंडीगीवाइ मूलसिरी // 84 // गंगा अणोरपारा कहमुत्तिण्ण त्ति भणसि मे जं तु / इत्थ वि पच्चयजणणं सुणेहि रामायणे वित्तं // 5 // सीआपउत्तिहेउं पवणसुओ राहवेण आणत्तो / लंकापुरि अइगओ बाहाहिं महोअहिं तरिउं // 86 // दिट्ठाए सीआए पिअपडिवत्तिं सुणित्तु तुट्ठाए / भणिओ कह ते उअही तिण्णो हणुअंत सो भणइ . // 87 // तव प्रसादात् तव च प्रसायाद् भर्तुश्च ते देवि तव प्रसादात् / साधूनते(?) येन पितुः प्रसादात् तीर्णो मया गोष्पदवत् समुद्रः // 22