________________ // 36 // // 37 // // 38 // .. // 39 // // 40 // संवरणिच्छिड्डुत्तं सुधुंछुज्जीवणं सुपरिसुद्धं। विहिसज्झाओ मरणादवेक्खणं जइजणुवएसो उवएसोऽविसयम्मी विसए वि अणीइसो अणुवएसो। बंधनिमित्तं णियमा जहोइओ पुण भवे जोगो गुरुणो अजोगिजोगो अच्चंतविवागदारुणो णेओ। जोगीगुणहीलणा णट्ठणासणा धम्मलाघवओ एयम्मि परिणयम्मी पवत्तमाणस्स अहिगठाणेसु / एस विही अइणिउणं पायं साहारणो णेओ निययसहावालोयण-जणवायावगम-जोगसुद्धीहिं / . उचियत्तं णाऊणं निमित्तओ सइ पयट्टेज्जा गमणाइएहि कायं णिरवज्जेहिं वयं च भणिएहिं। सुहचिंतणेहि य मणं सोहेज्जा जोगसुद्धि त्ति सुहसंठाणा अण्णे कायं वायं च सुहसरेणं तु / सुहसुविणेहिं च. मणं जाणेज्जा साहु सुद्धि त्ति .. एत्थ उवाओ य इमो सुहदव्वाइसमवायमासज्ज / पडिवज्जइ गुणठाणं सुगुरू समीवम्मि विहिणा तु वंदणमाई उ विही णिमित्तसुद्धी पहाण मो णेओ। सम्मं अवेक्खियव्वा एसा इहरा विही ण भवे उड्ढं अहिगगुणेहिं तुल्गुणेहिं च णिच्च संवासो। तग्गुणठाणोचियकिरियपालणासइसमाउत्तो उत्तरगुणबहुमाणो सम्मं भवरूवचिंतणं चित्तं / अरईए अहिगयगुणे तहा तहा जत्तकरणं तु अकुसलकम्मोदयपुव्वरूवमेसा जओ समक्खाया। . सो पुण उवायसज्झो पाएण भयाइसु पसिद्धो 260 // 41 // // 42 // // 43 // // 44 // // 45 //