________________ // 11 // // 12 // // 13 / / गाई // 14 // // 15 // // 16 // तप्पोग्गलाण तग्गहण सहावावगमओ य एयं ति / इय दट्ठव्वं इहरा, तहबंधाई न जुज्जति एयं पुण णिच्छयओ अइसयणाणी वियाणए णवरं।। इयरो वि य लिंगेहिं उवउत्तो तेण भणिएहिं पावं न तिव्वभावा कुणइ, ण बहुमण्णई भवं घोरं / उचियट्टिई च सेवइ, सव्वत्थ वि अपुणबंधो त्ति . सुस्सूस धम्मराओ गुरु-देवाणं जहासमाहीए। वेयावच्चे णियमो सम्मद्दिट्ठिस्स लिंगाई .. मग्गणुसारी सद्धो पण्णवणिज्जो कियापरो चेव। गुणरागी सक्कारंभसंगओ तह य चारित्ती एसो सामाइयसुद्धिभेयओ णेगहा मुणेयव्वो। आणापरिणइभेया अंते जा वीयरागो त्ति पडिसिद्धेसु अदेसे विहिएसु य ईसिरागभावे वि। सामाइयं असुद्धं सुद्धं समयाए दोसुं पि एवं विसेसणाणा आवरणावगमभेयओ चेय / इय दट्ठव्वं पढमं भूसणठाणाइपत्तिसमं किरिया उ दंडजोगेण चक्कभमणं व होइ एयस्स। आणाजोगा पुव्वाणुवेहओ चेव णवरं ति वासी-चंदणकप्पो समसुह-दुक्खो मुणी समक्खाओ। भव-मोक्खापडिबद्धो अओ य पाएण सत्थेसु एएसि णियणियभूमियाए उचियं जमेत्थऽणुट्ठाणं / आणामयसंयुत्तं तं सव्वं चेव योगो त्ति तल्लक्खणयोगाओ उ चित्तवित्तीणिरोहओ चेव . तह कुसलपवित्तीए मोक्खेण उ जोयणाओ त्ति // 17 // // 18 // // 19 // // 20 // // 22 // 258