________________ समुद्धृत्यार्जितं पुण्यं यदेनं शुभयोगतः। . भवान्ध्यविरहात्तेन जनः स्ताद्योगलोचनः // 527 // // 2 // // 3 // // 4 // ॥योगशतकम् // नमिऊण जोगिणाहं, सुजोगसंदंसगं महावीरं / वोच्छामि जोगलेसं, जोगज्झयणाणुसारेणं निच्छयओ इह जोगो सण्णाणाईण तिण्ह संबंधो / मोक्खेण जोयणाओ णिद्दिट्ठो जोगिनाहेहिं सण्णाणं वत्थुगओ बोहो, सइंसणं तु तत्थ रुई। सच्चरणमणुट्टाणं विहि-पडिसेहाणुगं तत्थ ववहारओ उ एसो विन्नेओ एयकारणाणं पि। जो संबंधो सो वि य कारणकज्जोवयाराओ गुरु विणओ सुस्सूसाइया य विहिणा उ धम्मसत्थेसु तह चेवाणुट्ठाणं विहि-पडिसेहेसु जहसत्ति एत्तो च्चिय कालेणं नियमा सिद्धी पगिट्ठरूवाणं / सण्णाणाईण तहा जायइ अणुबंधभावेण मग्गेणं गच्छंतो सम्मं सत्तीए इट्ठपुरपहिओ। जह तह गुरुविणयाइसु पयट्टओ एत्थ जोगि त्ति अहिगारिणो उवाएण होइ सिद्धी समत्थवत्थुम्मि / फलंपगरिसभावाओ, विसेसओ जोगमग्गम्मि अहिगारी पुण एत्थं विण्णेओ अपुणबंधगाइ त्ति / तह तह णियत्तपगई-अहिगारो णेगभेओ त्ति अणियत्ते पुण तिए एगंतेणेव हंदि अहिगारे / तप्परतंतो भवरागओ दढं अणहिगारि त्ति // 6 // // 7 // // 8 // // 10 // રપ.