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________________ // 395 // // 396 // // 397 // . // 398 // // 399 // // 400 // विस्रोतोगमने न्याय्यं भयादौ शरणादिवत् / गुर्वाद्याश्रयणं सम्यक्ततः स्यादुरितक्षयः सर्वमेवेदमध्यात्म कुशलाशयभावतः / औचित्याद्यत्र नियमाल्लक्षणं यत्पुरोदितम् देवादिवन्दनं सम्यक्प्रतिक्रमणमेव च / मैत्र्यादिचिन्तनं चैतत्सत्त्वादिष्वपरे विदुः स्थानकालक्रमोपेतं शब्दार्थानुगतं तथा। अन्यासंमोहजनकं श्रद्धासंवेगसूचकम्’ प्रोल्लसद्भावरोमाञ्चं वर्धमानशुभाशयम् / / अवनामादिसंशुद्धमिष्टं देवादिवन्दनम् प्रतिक्रमणमप्येवं सति दोषे प्रमादतः / तृतीयौषधकल्पत्वाद्विसन्ध्यमथवाऽसंति निषिद्धासेवनादि यद्विषयोऽस्य प्रकीर्तितः / तदेतद्भावसंशुद्धेः कारणं परमं मतम् मैत्रीप्रमोदकारुण्यमाध्यस्थ्यपरिचिन्तनम् / . सत्त्वगुणाधिकक्लिश्यमानाऽप्रज्ञाप्यगोचरम् विवेकिनो विशेषेण भवत्येतद्यथागमम् / तथा गम्भीरचित्तस्य सम्यग्मार्गानुसारिणः एवं विचित्रमध्यात्ममेतदन्वर्थयोगतः / आत्मन्यधीति संवृत्ते यमध्यात्मचिन्तकैः भावनादित्रयाभ्यासाद्वर्णितो वृत्तिसंक्षयः / स चात्मकर्मसंयोगयोग्यताऽपगमोऽर्थतः स्थूरसूक्ष्मा यतश्चेष्टा आत्मनो वृत्तयो मताः / अन्यसंयोगजाश्चैता योग्यताबीजमस्य तु // 401 // // 402 // // 403 // // 404 // - // 405 // // 406 // 246
SR No.004453
Book TitleShastra Sandesh Mala Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2005
Total Pages326
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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