________________ // 383 // // 384 // // 385 // // 386 // // 387 / / // 388 // देवतापुरतो वापि जले वाऽकलुषात्मनि / विशिष्टद्रुमकुळे वा कर्तव्योऽयं सतां मतः पर्वोपलक्षितो यद्वा पुत्रञ्जीवकमालया। नासाग्रस्थितया दृष्ट्या प्रशान्तेनान्तरात्मना विधाने चेतसो वृत्तिस्तद्वर्णेषु तथेष्यते / अर्थे चालम्बने चैव त्यागश्चोपप्लवे सति मिथ्याचारपरित्याग आश्वासात्तत्र वर्तनम् / तच्छुद्धिकामता चेति त्यागोऽत्यागोऽयमीदृशः यथाप्रतिज्ञमस्येह कालमानं प्रकीर्तितम् / अतो ह्यकरणेऽप्यत्र भाववृत्तिं विदुर्बुधाः मुनीन्द्रैः शस्यते तेन यत्नतोऽभिग्रहः शुभः / सदातो भावतो धर्मः क्रियाकाले क्रियोद्भवः स्वौचित्यालोचनं सम्यक्ततो धर्मप्रवर्तनम् / आत्मसम्प्रेक्षणं चैव तदेतदपरे जगुः योगेभ्यो जनवादाच्च लिङ्गेभ्योऽथ यथागमम् / स्वौचित्यालोचनं प्राहुर्योगमार्गकृतश्रमाः योगाः कायादिकर्माणि जनवादस्तु तत्कथा / शकुनादीनि लिङ्गानि स्वौचित्यालोचनास्पदम् एकान्तफलदं ज्ञेयमतो धर्मप्रवर्तनम् / .. अत्यन्तं भावसारत्वात्तत्रैव प्रतिबन्धतः / तद्भङ्गादिभयोपेतस्तत्सिद्धौ चोत्सुको दृढम् / यो धीमानिति सन्यायात्स यदौचित्यमीक्षते आत्मसम्प्रेक्षणं चैव ज्ञेयमारब्धकर्मणि / पापकर्मोदयादत्र भयं तदुपशान्तये 245 // 389 // // 390 // // 391 // // 392 // // 393 // // 394 // . . . 245