________________ // 9 // श्रावकधर्मविंशिका // धम्मोवग्गहदाणाइसंगओ सावगो परो होइ / भावेण सुद्धचित्तो निच्चं जिणवयणसवणरई // 161 // मग्गणुसारी सड्ढो पनवणिज्जो कियापरो चेव / गुणरागी सक्कारंभसंगओ देसचारित्ती // 162 // पंच य अणुव्वयाइं गुणव्वयाइं च हुति तिन्नेव / सिक्खावयाई चउरो सावगधम्मो दुवालसहा // 163 // एसो य सुप्पसिद्धो सहाइयारेहिं इत्थ तंतम्मि / कुसलपरिणामरूवो नवरं सइ अंतरो नेओ // 164 // सम्मा पलियपुहुत्तेऽवगए कम्माण एस होइ त्ति / सो वि खलु अवगमो इह विहिगहणाईहिं होइ जहा // 165 // गुरुमूले सुयधम्मो संविग्गो इत्तरं व इयरं वा / गिण्हइ वयाइं कोइ पार्लइ य तहा निरइयारं // 166 // एसो ठिइओ इत्थं न उ गहणादेव जायई नियमा / गहणोवरिपि जायइ जाओ वि अवेइ कम्मुदया // 167 // तम्हा निच्चसईए बहुमाणेणं च अहिगयगुणम्मि / पडिवक्खदुगुंछाए परिणइयालोयणेणं च / // 168 // तित्थंकरभत्तीए सुसाहुजणपज्जुवासणाए य / उत्तरगुणसद्धाए इत्थ सया होइ जइयव्वं // 169 // एवमसंतो वि इमो जायइ जाओ वि न पडइ कयाइ / ता इत्थं बुद्धिमया अपमाओ होइ कायव्वो // 170 // निवसिज्ज तत्थ सड्ढो साहूणं जत्थ होइ संपाओ / चेइयघरा उ जहियं तदन्नसाहम्मिया चेव // 171 // 15