________________ // 191 // // 192 // // 193 // // 194 // // 195 // // 196 // अभिमानसुखाभावे तथा क्लिष्टान्तरात्मनः / अपायशक्तियोगाच्च न हीत्थं भोगिनः सुखम् अतोऽन्यस्य तु धन्यादेरिदमत्यन्तमुत्तमम् / यथा तथैव शान्तादेः शुद्धानुष्ठानमित्यपि क्रोधाद्यबाधितः शान्त उदात्तस्तु महाशयः / शुभानुबन्धिपुण्याच्च विशिष्टमतिसङ्गतः ऊहतेऽयमतः प्रायो भवबीजादिगोचरम् / कान्तादिगतगेयादि तथा भोगीव सुन्दरम् प्रकृतेर्भेदयोगेन नासमो नाम आत्मनः / हेत्वभेदादिदं चारु न्यायमुद्रानुसारतः एवं च सर्वस्तद्योगादयमात्मा तथा तथा / भवे भवेदतः सर्वप्राप्तिरस्याविरोधिनी . सांसिद्धिकमलाद्यद्वा न हेतोरस्ति सिद्धता। तद्भिन्नं यदभेदेऽपि तत्कालादिविभेदतः विरोधिन्यपि चैवं स्यात्तथा लोकेऽपि दृश्यते / / स्वरूपेतरहेतुभ्यां भेदादेः फलचित्रता एवमूहप्रधानस्य प्रायो मार्गानुसारिणः / एतद्वियोगविषयोऽप्येष सम्यक् प्रवर्तते एवंलक्षणयुक्तस्य प्रारम्भादेव चापरैः। .. योग उक्तोऽस्य विद्वद्भिर्गोपेन्द्रेण यथोदितम् योजनोद्योग इत्युक्तो मोक्षेण मुनिसत्तमैः / स निवृत्ताधिकारायां प्रकृतौ लेशतो ध्रुवः वेलावलनवंन्नद्यास्तदापूरोपसंहृतेः / प्रतिस्रोतोनुगत्वेन प्रत्यहं वृद्धिसंयुतः - 220 . // 197 // // 198 // // 199 // // 200 // // 201 // // 202 //