________________ // 155 // // 156 // // 157 // . // 158 // // 159 // // .160 // विषं गरोऽननुष्ठानं तद्धेतुरमृतं परम् / गुर्वादिपूजानुष्ठानमपेक्षादिविधानतः विषं लब्ध्याद्यपेक्षात इदं सच्चित्तमारणात् / महतोऽल्पार्थनाज्ज्ञेयं लघुत्वापादनात्तथा दिव्यभोगाभिलाषेण गरमाहुर्मनीषिणः / एतद्विहितनीत्यैव कालान्तरनिपातनात् अनाभोगवतश्चैतदननुष्ठानमुच्यते।। सम्प्रमुग्धं मनोऽस्येति ततश्चैतद्यथोदितम् एतद्रागादिदं हेतुः श्रेष्ठो योगविदो विदुः / सदनुष्ठानभावस्य शुभभावांशयोगतः जिनोदितमिति त्वाहुर्भावसारमदः पुनः / संवेगगर्भमत्यन्तममृतं मुनिपुङ्गवाः ' एवं च कर्तृभेदेन चरमेऽन्यादृशं स्थितम् / पुद्गलानां परावर्ते गुरुदेवादिपूजनम् यतो विशिष्टः कर्तायं तदन्येभ्यो नियोगतः / : तद्योगयोग्यताभेदादिति सम्यग्विचिन्त्यताम् चतुर्थमेतत्प्रायेण ज्ञेयमस्य महात्मनः / . सहजाल्पमलत्वं तु युक्तिरत्र पुरोदिता सहजं तु मलं विद्यात्कर्मसम्बन्धयोग्यताम् / आत्मनोऽनादिमत्त्वेऽपि नायमेनां विना यतः अनादिमानपि ह्येष बन्धत्वं नातिवर्तते / योग्यतामन्तरेणापि भावेऽस्यातिप्रसङ्गता एवं चानादिमान्मुक्तो योग्यताविकलोऽपि हि / बध्येत कर्मणा न्यायात्तदन्यामुक्तवृन्दवत् 226 // 161 // // 162 // // 163 // // 164 // // 165 // // 166 //