________________ // 60 // // 61 // // 62 // // 63 // // 64 // // 65 // इत्थं सदाशयोपेतस्तत्त्वश्रवणतत्परः / प्राणेभ्यः परमं धर्म बलादेव प्रपद्यते क्षाराम्भस्त्यागतो यद्वन्मधुरोदकयोगतः / बीजं प्ररोहमाधत्ते तद्वत्तत्त्वश्रुतेनर: क्षाराम्भस्तुल्य इह च भवयोगोऽखिलो मतः / मधुरोदकयोगेन समा तत्त्वश्रुतिस्तथा अतस्तु नियमादेव कल्याणमखिलं नृणाम् / गुरुभक्तिसुखोपेतं लोकद्वयहितावहम् गुरुभक्तिप्रभावेन तीर्थकृद्दर्शनं मतम् / समापत्त्यादिभेदेन निर्वाणैकनिबन्धनम् सम्यग्घेत्वादिभेदेन लोके यस्तत्त्वनिर्णयः / वेद्यसंवेद्यपदतः सूक्ष्मबोधः स उच्यते . भवाम्भोधिसमुत्तारात्कर्मवज्रविभेदतः / ज्ञेयव्याप्तेश्च कात्स्न्येन सूक्ष्मत्वं नायमत्र तु अवेद्यसंवेद्यपदं यस्मादासु तथोल्बणम् / पक्षिच्छायाजलचरप्रवृत्त्याभमतः परम् अपायशक्तिमालिन्यं सूक्ष्मबोधविबन्धकृत् / नैतद्वतोऽयं तत्तत्त्वे कदाचिदुपजायते / अपायदर्शनं तस्माच्छ्रुतदीपान्न तात्त्विकम् / . तदाभालम्बनं त्वस्य तथा पापे प्रवृत्तितः 'अतोऽन्यदुत्तरास्वस्मात्पापे कर्मागसोऽपि हि / तप्तलोहपदन्यासतुल्या वृत्तिः क्वचिद्यदि वेद्यसंवेद्यपदतः संवेगातिशयादिति / चरमैव भवत्येषा पुनर्दुर्गत्ययोगतः / // 66 // // 67 // // 68 // // 69 // // 70 // // 71 // 19