________________ // 48 // ... // 49 // // 50 // // 51 // // 52 // . // 53 // नास्माकं महती प्रज्ञा सुमहान् शास्त्रविस्तरः। शिष्टाः प्रमाणमिह तदित्यस्यां मन्यते सदा सुखासनसमायुक्तं बलायां दर्शनं दृढम् / परा च तत्त्वशुश्रूषा न क्षेपो योगगोचरः नास्यां सत्यामसत्तृष्णा प्रकृत्यैव प्रवर्तते / तदभावाच्च सर्वत्र स्थितमेव सुखासनम् अत्वरापूर्वकं सर्वं गमनं कृत्यमेव वा। प्रणिधानसमायुक्तमपायपरिहारतः , कान्तकान्तासमेतस्य दिव्यगेयश्रुतौ यथा / यूनो भवति शुश्रूषा तथास्यां तत्त्वगोचरा बोधाम्भ:स्रोतसश्चैषा सिरातुल्या सतां मता। अभावेऽस्याः श्रुतं व्यर्थमसिरावनिकूपवत् श्रुताभावेऽपि भावेऽस्याः शुभभावप्रवृत्तितः / फलं कर्मक्षयाख्यं स्यात्परंबोधनिबन्धनम् शुभयोगसमारम्भे न क्षेपोऽस्यां कदाचन / / उपायकौशलं चापि चारु तद्विषयं भवेत् परिष्कारगतः प्रायो विघातोऽपि न विद्यते / अविघातश्च सावधपरिहारान्महोदयः प्राणायामवती दीप्रा न योगोत्थानवत्यलम् / तत्त्वश्रवणसंयुक्ता सूक्ष्मबोधविवर्जिता प्राणेभ्योऽपि गुरुर्धर्मः सत्यामस्यामसंशयम् / प्राणांस्त्यजति धर्मार्थं न धर्मं प्राणसङ्कटे एक एव सुहृद्धर्मो मृतमप्यनुयाति यः। .. शरीरेण समं नाशं सर्वमन्यत्तु गच्छति // 54 // // 55 // // 56 // // 57 // // 58 // / // 59 // 198