________________ सिंहासनोपविष्टं छत्रत्रयकल्पपादपस्याधः / / सत्त्वार्थसम्प्रवृत्तं देशनया कान्तमत्यन्तम् // 226 // आधीनां परमौषधमव्याहतमखिलसम्पदां बीजम् / चक्रादिलक्षणयुतं सर्वोत्तमपुण्यनिर्माणम् // 227 // निर्वाणसाधनं भुवि भव्यानामग्यमतुलमाहात्म्यम् / सुरसिद्धयोगिवन्धं वरेण्यशब्दाभिधेयं च // 228 // परिणत एतस्मिन् सति सद्ध्याने क्षीणकिल्बिषो जीवः / निर्वाणपदासन्नः शुक्लाभोगो विगतमोहः // 229 // चरमावञ्चकयोगात् प्रातिभसञ्जाततत्त्वसंदृष्टिः / इदमपरं तत्त्वं तद्यद्वशतस्त्वस्त्यतोऽप्यन्यत् // 230 // तस्मिन् दृष्टे दृष्टं तद् भूतं तत् परं मतं ब्रह्म / तद्योगादस्यापि ह्येषा त्रैलोक्यसुन्दरता . // 231 // सामर्थ्ययोगतो या तत्र दिदृक्षेत्यसङ्गसक्त्याढ्या / साऽनालम्बनयोगः प्रोक्तस्तदर्शनं यावत् // 232 // तत्राप्रतिष्ठितोऽयं यतः प्रवृत्तश्च तत्त्वतस्तत्र / सर्वोत्तमानुजः खलु तेनानालम्बनो गीत: // 233 // द्रागस्मात्तदर्शनमिषुपातज्ञातमात्रतो ज्ञेयम् / एतच्च केवलं तज् ज्ञानं यत्तत्परं ज्योतिः / // 234 // आत्मस्थं त्रैलोक्यप्रकाशकं निष्क्रियं परानन्दम् / अतीतादिपरिच्छेदकमलं ध्रुवं चेति समयज्ञाः // 235 // एतद्योगफलं तत्परापरं दृश्यते परमनेन / तत्तत्त्वं यद् दृष्ट्वा निवर्तते दर्शनाकाङ्क्षा / // 236 // तनुकरणादिविरहितं तच्चाचिन्त्यगुणसमुदयं सूक्ष्मम् / / त्रैलोक्यमस्तकस्थं निवृत्तजन्मादिसङ्लेशम् // 237 // 110