________________ // सामायिकाष्टकम् // 29 // सामायिकं च मोक्षाङ्गं परं सर्वज्ञभाषितम् / वासीचन्दनकल्पानामुक्तमेतन्महात्मनाम् // 225 // निरवद्यमिदं ज्ञेयमेकान्तेनैव तत्त्वतः / कुशलाशयरूपत्वात् सर्वयोगविशुद्धितः // 226 // यत्पुनः कुशलं चित्तं लोकदृष्ट्या व्यवस्थितम् / तत्तथौदार्ययोगेऽपि चिन्त्यमानं न तादृशम् // 227 // मय्येव निपतत्वेतज्जगदुश्चरितं यथा / मत्सुचरितयोगाच्च मुक्तिः स्यात्सर्वदेहिनाम् // 228 // असंभवीदं यद्वस्तु. बुद्धानां निर्वृतिश्रुतेः / संभवित्वे त्वियं न स्यात्तत्रैकस्याप्यनिर्वृतौ . // 229 // तदेवं चिन्तनं न्यायात्तत्त्वतो मोहसंगतम् / साध्ववस्थान्तरे ज्ञेयं बोध्यादेः प्रार्थनादिवत् . // 230 // अपकारिणि सद्बुद्धिर्विशिष्टार्थप्रसाधनात् / आत्मभरित्वपिशुना तदपायानपेक्षिणी // 231 // एवं सामायिकादन्यदवस्थान्तरभद्रकम् / स्याच्चित्तं तत्तु संशुद्धे यमेकान्तभद्रकम् // 232 // // केवलज्ञानाष्टकम् // 30 // सामायिकविशुद्धात्मा सर्वथा घातिकर्मणः / क्षयात्केवलमाप्नोति लोकालोकप्रकाशकम् // 233 // ज्ञाने तपसि चारित्रे सत्येवास्योपजायते / विशुद्धिस्तदतस्तस्य तथाप्राप्तिरिहेष्यते // 234 // 3