________________ ( 4 ) की शैली भी है। अरे! यह तो छोटा बच्चा भी समझता है कि देव के वीतराग होने के कारण उनका द्रव्य के साथ कुछ भी संबंध नहीं है। फिर भी देवद्रव्य' शब्द सुघटित है यह बात भी तो चौक्कस है। 'मध्यम पद लोपी' समास के ज्ञाता और दो पदों के बीच पूर्ण अर्थ के योजक को 'देवद्रव्य' शब्द, कदापि अघटित नहीं, लगेगा। परन्तु खेद का विषय है कि वर्तमान काल में 'देवद्रव्य' की व्यवस्था ( कुछ स्थलों को छोड़ कर ) लगभग सर्वत्र बहुत ही बिगड़ गई है। देशकाल को नहीं जानने वाले, रूढ़ि की व्याख्या को नहीं समझने वाले और मन में बैठी हुई वास्तविक प्राचीन परम्परा से ईश्वर वाक्यवत् चिपके रहने वाले मंदिरों और पेढ़ियों के ट्रस्टी लोग एवं कितने ही धर्मान्ध व्यक्ति अपने ऊपर रही हई 'देवद्रव्य' सम्बन्धी जिम्मेदारी का कुछ भी ख्याल नहीं करे तो क्या यह जबर्दस्त अनुचित बात नहीं है ? शास्त्रों के कथनानुसार-प्रमाणानुसार तो 'देव-द्रव्य' / श्रावक अथवा अन्य किसी व्यक्ति को भी व्याज पर देने या रखने का अधिकार नहीं है। कदाचित, अपवाद मार्ग से देना या रखना पड़े तो बदले में आभूषण या