________________ ( 3 ) सूचक ही है। प्राचीन नगरों के वर्णन में स्थान-स्थान पर देवमंदिरों का भी वर्णन आता है। विशाला जैसी नगरी में असंख्य मंदिर होने के कारण 'विशाला' का नाम ही 'बिहार' पड़ा था। चूंकि 'विहार' शब्द 'जिनचैत्य' बोधक है। इसके लिए विशेष लिखना लगभम सिद्धसाधन जैसा है। अतः इस पर अधिक नहीं लिखते हुए, जिस बात पर ज्यादा विचार-भेद देखने में आता है उसी तरफ ज्यादा ध्यान देंगे। विचार भेद वाला विषय है- 'देवद्रव्य' / 'देवद्रव्य' वस्तुतः सत्य है। जहाँ मूर्ति है, वहाँ 'देवद्रव्य' निश्चित होगा ही। मूर्ति संबंधी द्रव्य अर्थात् मूर्ति के लिए समर्पण बुद्धि से अर्पित किए हुए 'द्रव्य' को ही 'देवद्रव्य' कह सकते हैं। इस बात का कथन सर्वप्रथम ही कर दिया गया है। अतः 'देवद्रव्य' कोई वस्तु ही नहीं है इस बात का तो निराकरण हो ही चुका है। अब 'देवद्रव्य' के व्यवस्था के संबंध में कुछ विचार करेंगे। ___ 'देवद्रव्य' के नाम से जिस 'द्रव्य' का निर्माण हो गया है उस 'द्रव्य' का पाप-कार्यों में तो व्यय कर ही नहीं सकते हैं / 'देवद्रव्य' का व्यय तो 'देवमूर्ति' अथवा 'देव मंदिर' के लिए ही हो सकता है। देव को समर्पित वस्तु का यदि देवभक्त ही भक्षण कर ले तब तो सरासर अन्याय ही है, विवेकहीनता ही है। यही जैन शासन