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________________ अन्य किसी ऐसी वस्तु को गिरवी रखकर दे या रखे / इस बात को मन्दिरों और पेढियों के ट्रस्टी लोग, गुरुमुख से श्रवण करने पर भी, जानने पर भी कार्यान्वित नहीं करते हैं, अमल में नहीं लाते हैं। वे लोग अपनी ही मनमानी करते हैं। यह वास्तव में शोचनीय विषय है। परिणामतः यदि द्रव्य का नाश होता है तो दोष के भागी कार्यकर्ता ही होते हैं। सुना जाता है कि कहींकहीं पर तो 'देवद्रव्य' का व्यय ऐसे-ऐसे पाप-कार्यों में होता है जो शास्त्र-दष्टि से एक सामान्य जैन के लिए भी उचित नहीं है परन्तु समझना चाहिए कि देवद्रव्य का व्यय ऐसे पापकार्यों में करने का किसी को भी अधिकार नहीं है। देवद्रव्य का व्यय केवल देवों की आशातना को दूर करने के लिए ही होना चाहिए, किन्तु ऐसी आशातनाओं को दूर करने की तरफ तो लक्ष्य ही किसका है ? एक मन्दिर का कार्यकर्ता, समीपवर्ती दूसरे मंदिर की यदि दिवाल गिरती हो, अथवा मन्दिर में भगवान की आशातना होती हो तो भी देवद्रव्य का व्यय करने में संकोच करता है तथा मंदिर एवं भगवंत की आशातना को देखकर भी वह इस प्रकार से आँखमिचौनी कर जाता है जैसे इस मंदिर या भगवंतप्रतिमा से उसका कुछ भी संबंध न हो। तो क्या इससे उन कार्यकर्ताओं का उस देवद्रव्य के ऊपर मोह
SR No.004448
Book TitleDevdravya Sambandhi Mere Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsuri
PublisherMumukshu
Publication Year
Total Pages130
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size6 MB
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