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________________ प्रकट नहीं होता है ? अथवा उनके हृदय में गलत मंतव्य भर गया हो ऐसा सिद्ध नहीं होता है ? __मेरा तो यह दृढ़ मन्तव्य है कि ऐसे परिणाम का मुख्य कारण देवद्रव्य में असाधारण वृद्धि का होना है। ग्रामग्राम के और मुख्य कर बड़े-बड़े शहरों के मंदिरों के पुराने हिसाब-किताब को यदि देखा जाय तो ऐसे कुछ ही मंन्दिर होंगे जिनका द्रव्य श्रावकों अथवा अन्यों के पास नहीं रह गया हो। गाँव-गाँव में विहार करने वाले साधु-मुनिराजों को अनुभव है कि वे जहाँ जाते हैं वहाँ श्रावकों में अधिकतर इसके लिए ही रगड़े - झगड़े होते नजर आते हैं। 'अमुक व्यक्ति चौपड़े नहीं बता रहा है फलानचन्द के यहाँ इतने रुपये रखे हुए थे परन्तु वह अब जवाब ही नहीं देता है'। 'महाराज अमुक चंद के यहाँ आपको गोचरी जाना उचित नहीं, है क्यों कि वह व्यक्ति देवद्रव्य का भक्षण करता है।' इत्यादि फरियादें-शिकायतें जहाँ देखो वहाँ चालू ही रहती है / इसका मुख्य कारण पहले ही बताया। जा चुका है कि देवद्रव्य में असाधारण वृद्धि का होना ही है। देवद्रव्य जैसे-जैसे बढ़ता जाय वैसे - वैसे जीर्णोद्धारादि कार्यों में उसका व्यय होता जाये तो ऐसाप्रसंग ही खड़ा नहीं हो। इसलिए मेरा तो यही कहना है कि जिन-जिन मंदिरों एवं पेढ़ियों के हस्तक देवद्रव्य
SR No.004448
Book TitleDevdravya Sambandhi Mere Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsuri
PublisherMumukshu
Publication Year
Total Pages130
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size6 MB
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