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________________ ( 71 ). भक्षणादि करने से या किसी अन्य प्रकार से भी यदि नाश होता हो, उसको रोकने का सामर्थ्य होने पर भी 'जो नाश करेगा वह उसका फल पायेगा' इस प्रकार की बुद्धि से यदि उसकी उपेक्षा करता है और जागृत नहीं होता है अर्थात् ध्यान नहीं देता है, वह भी। - इन तीनों का टीकाकार ने जो उल्लेख किया है उससे ऐसा कुछ भी अर्थ नहीं निकलता है कि रिवाजों में परिवर्तन करने वाला संसार में परिभ्रमण करता है। इसपर भी 'रिवाजों में परिवर्तन हो ही नहीं सकता है।' इस बात की पुष्टि हेतु उपयुक्त गाथार्थ का स्पष्टतया कथन किये बिना ही गाथा आगे कर दी जाती है। यह आश्चर्यजनक बात है.।। . इस प्रसंग पर ऐक अन्य बात को स्पष्ट करना आवश्यक समझता हूं। वह यह है कि 'दर्शनशुद्धि' की उपयुक्त गाथा में आये हुए 'आदान' शब्द की स्पष्टता करते हुए अवश्य कहा गया है कि जो 'क्षेत्र-घर-बाजार और ग्रामादि का लोप करता है वह भवभ्रमण करता है।' किन्तु इससे कोई यह न समझ ले कि 'देवद्रव्य की वृद्धि हेतु क्षेत्र-घर-बाजार और ग्रामादि रखने ही चाहिए और यदि नहीं हो तो नये बनाने चाहिए।' देवद्रव्य की वृद्धि हेतु ऐसे कार्यो (आरम्भ-समारम्भ) का उपदेश
SR No.004448
Book TitleDevdravya Sambandhi Mere Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsuri
PublisherMumukshu
Publication Year
Total Pages130
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size6 MB
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