SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 70 ) विशेष स्पष्टता हेतु लिखना आवश्यक है कि उपयुक्त गाथा में तीन को भवभ्रमणकर्ता कहा गया है-(१) आदान भंगकर्ता (2) प्रतिपन्न धन को नहीं देने वाला और (3) नाश होते हुएं की उपेक्षा करने वाला। इन तीनों का टीकाकार ने जो स्पष्टार्थ किया है वह इस प्रकार है (1) आदानभंगकर्ता-राज़ामात्यादिवितीर्णक्षेत्रगृहहट्टग्रामादि यो भनक्ति लुम्पति-अर्थात्-राजा, मंत्री इत्यादि द्वारा प्रदत्त क्षत्र, घर, बाजार (हाट) अथवा ग्राम वगैरह को तोड़ता है अथवा उनका लोप करता है, वह / (2) प्रतिपन्न धन को नहीं देने वाला-म्रियमाणे पित्रादौ स्वयं वा धर्मनिमित्तमेतावद्दास्यामीति कल्पितद्रव्यं न ददाति न वितरति देवाय / अर्थात्-पितादि के मरने पर अथवा स्वयं धर्मनिमित्त 'मैं इतना दूंगा' इस प्रकार की कल्पना से स्वीकृत धन को नहीं देता है-देव निमित्त उपयोग नहीं करता है, वह / (3) नाश होते हुए की उपेक्षा करने वाला-नश्यदायदानादिकमेव प्रलीयमानं तच्चितकभक्षणादिना केनचित्प्रकारेण, यो यत्करिष्यति स तत्फलमवाप्स्यतीति बुद्धया समुपेक्षते, न प्रतिजागत्ति सामर्थ्य सतीत्यध्यार्य ,सोऽपि / अर्थात्-आदान वस्तुओं (उपयुक्त) का, रक्षक द्वारा
SR No.004448
Book TitleDevdravya Sambandhi Mere Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsuri
PublisherMumukshu
Publication Year
Total Pages130
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy