________________ ( 65 ) नहीं मिल जाते तब तक उन्हें गलत मानने का कोई कारण प्रतीत नहीं होता है। यह आश्चर्य की बात है कि अपने भण्डारों में 45 आगम और पूर्वाचार्यों के सहस्रग्रन्थों के विद्यमान होने पर भी, एकमात्र "श्राद्धविधि' ग्रन्थ की एक पंक्ति में आये 'उत्सर्पण' शब्द को आगे कर मेरे उपयुक्त विचारों को असत्य करने का प्रयत्न किया जा रहा है, किन्तु उस उत्सर्पण शब्द का अर्थ क्या होता है ? जहाँ-जहाँ 'उत्सर्पण' शब्द आया है वहाँ-वहाँ उसके क्या-क्या अर्थ होते हैं और 'उत्सर्पण' शब्द के अर्थ में बोली बोलने की गंध भी आती है या नहीं ? ये सब बातें "बोली बोलने के विधान श्राद्धविधि में है क्या ?" इस नाम के 'ट्रक्ट' में प्रवर्तक श्री मंगल विजयजी ने विस्तार से बताया है अतः उसका पिष्टपेषण न करते हुए प्रत्येक व्यक्ति को वह 'ट्रक्ट' ध्यानपूर्वक पढ़ने की सूचना करता हूं। उस ट्रेक्ट के पढ़ने से संबको ही ज्ञात हो जायेगा कि 'उत्सर्पण' शब्द का अर्थ 'बोली बोलना' किसी भी कोश या ग्रन्थ में नहीं किया गया है और वैसा अर्थ हो भी नहीं सकता। अक और भी आश्चर्य ! कोई तो "श्राद्धविधि" के 'उत्सर्पण' शब्द को उत्सर्पिणी काल के साथ तुलना कर