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________________ 'बोली बोलना' ऐसा अर्थ करने का प्रयत्न करता है, किन्तु आश्चर्य की बात तो यह है कि ऐसा करने का प्रयत्न करने से तो 'उल्टी मस्जिद कोटे वलगी' जैसा हो गया। यह देखा नहीं जाता कि 'उत्सर्पिणी काल' का अर्थ क्या है ? “ज़िस काल में रूप-रस-गन्ध-स्पर्श की वृद्धि होती है, उसकाल को उत्सर्पिणी कालकहा जाता है।" इस बात को जैनशैली का थोड़ा भी ज्ञाता, एक बालक भी समझ सकता है। तब फिर 'उत्सर्पिणी काल' के साथ 'द्रव्योत्सर्पणपूर्वकारात्रिकविधानादिना' इस पाठ का क्या सम्बन्ध है ?. उत्सर्पिणी काल का अर्थ 'जिस काल में रूप-रस-गंध-स्पर्श की बोली बोली जाती हो' ऐसा करना चाहते हैं क्या? किसी भी काल में रूपरस-गंध-स्पर्श की बोली बोली जाती हो ऐसा क्या किसी ने सुना है ? इस तत्त्वज्ञान ने तो कुछ नयी ही बात प्रकट की है। जो त्रिकाल में भी सिद्ध न हो सके या किसी की भी बुद्धि में न बैठ सके, वह तत्वज्ञान किसे चकित नहीं कर सकता है ? यह तो आसमान में चढ़ने के लिये धूएँ का आलम्बन लेने जैसा आश्चर्य जनक किसे नहीं लगेगा ? देवद्रव्य की वृद्धयर्थ ऐसी अनेक नई प्रथाएँ चालू होती है और पुरानी प्रथाएँ धीरे - धीरे विलीन होती रहती है अर्थात् जिस समय में, जिस क्षेत्र में देवद्रव्य की
SR No.004448
Book TitleDevdravya Sambandhi Mere Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsuri
PublisherMumukshu
Publication Year
Total Pages130
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size6 MB
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