________________ ( 64 ) वाले दर्जन के दर्जन रूमालों का वर्णन कर सकता है, इसका तात्पर्य यह नहीं है कि आज से 50, 100 या 200-500 वर्षों बाद पढ़ने वाले उस बात को शास्त्रीय मान लें अथवा 'अनादिकाल से ऐसे ही चला आ रहा है अतः उसमें हम परिवर्तन ही नहीं कर सकते' यदि ऐसी प्ररूपणा की जाएँ तो उस प्ररूपणा को हम सत्य कहेंगे क्या ? जो बात कुछ समय पूर्व ही घटित हुई हो किन्तु पुस्तक में लिखी गई है अतः वह अनादिकाल से चली आ रही है अथवा प्रचीनप्रथा ही है। ऐसी मान्यता अथवा श्रद्धा वालों के ऊपर हमें आश्चर्य नहीं होगा क्या ? जब तक प्राचीनता के प्रबल प्रमाण प्राप्त नहीं हो तथा जबतक प्राचीनग्रन्थों में ऐसा लिखा हुआ नहीं मिले कि इसमें परिवर्तन ही नहीं हो सकता है, तबतक सिर्फ बातें करने से कौन मानेगा ? क्योंकि अपनी प्रथम पत्रिका में ही मैंने अपने मन्तव्य को प्रकट कर दिया है कि "बोली बोलना अनादिकालीन प्रथा नहीं है और शास्त्रीय भी नहीं है। कुछ वर्षों से ही संघ द्वारा प्रचलित प्रथा है। इसीलिए बोली का द्रव्य (पैसा) साधारण खाते में ले जाने का यदि संघ निश्चय करना चाहे तो सहर्ष कर सकता है, इसमें किसी प्रकार का शास्त्रीय प्रतिबन्ध नहीं है।" इन दोनों बातों के विरुद्ध में जबतक आगमों और प्राचीन ग्रंथों में प्रबल प्रमाण