________________ का हम प्रत्यक्ष अनुभव करते हैं। तब फिर संघ द्वारा ही समर्थित बोली वगैरह के रीति-रिवाजों में परिवर्तन क्यों नहीं हो सकता? इसके अतिरिक्त एक और भी बात समझने जेसी है वह यह है कि इतिहास इस बात का साक्षी है कि मंदिरों की रक्षार्थ, उसके व्यय हेतु किसी-किलो स्थान पर निर्माणकर्ताओं अथवा वहाँ के राजाओं द्वारा गाँव भी दिये जाने का उल्लेख है। किसोकिसी स्थान पर व्यापार पर से अथवा प्रतिघर से टेक्सरूप में चन्दा लेने के दृष्टान्त भी मिलते हैं / यथा राजा सिद्धराज ने सिद्धाचलतीर्थ रक्षार्थ बारह गाँव दिये थे। हस्तिकुडी के राजा विदग्धराज ने वासुदेवाचार्य के उपदेश से निर्मापित (बनाये हुए) मंदिर के लिए बहुत सा टेक्सरूप में चन्दा (लागा) करके दिया था। उसके पुत्र मम्मट ने उन लागाओं को और भी मजबूत कर दिया था। पालनपुर में पहले के समय में प्रतिगुण पर सुपारी का लागा / टैक्स) था। जिससे प्रतिदिन 16 मण सुपारी मंदिर में आती थो। राणाकुम्भकर्ण के समय में (सं० 1461 में) श्री चिंतामणिपार्श्वनाथ की पूजार्थ देलवाडा ( मेवाड़ ) में मांडवो ऊपर 14 टके का लागा ( टेक्स ) डाला गया था। अभी भी उदयपुर महाराणा की तरफ से अनेक मंदिरों को व्यवस्था के लिए प्राप्त भूमि मौजूद है वैसे