________________ यथाशक्ति ग्राह्या, एवं नवोनभूषणचन्द्रोदयादि यथाशक्ति मोच्यं / " .. अर्थात्-देवद्रव्य को वृद्धि के लिये प्रतिवर्ष इन्द्रमाला अथवा दूसरी कोई माला यथाशक्ति ग्रहण करनी चाहिए और यथाशक्ति नवीन आभूषण तथा चन्द्रवें वगैरह रखने चाहिए। इसी प्रकार से श्राद्धविधि के पंचम प्रकाश में जहाँ श्रावकों के वार्षिक कृत्यों को गिनाया गया है वहाँ भो कहा गया है कि "जिनधनस्य-देवद्रव्यस्य वृद्धिर्मालोद्घट्टनेन्द्रमालादिपरिधानपरिधापनिकाधौतिकादिमोचनद्रव्योत्सर्पणपूर्वकारात्रिकविधानांदिना।" (देखिए पृष्ठ 161) अर्थात्-देवद्रव्य की वृद्धि माला ग्रहण करके, इन्द्रमाला पहिनकर, पहरामणो एवं धोतियों वगैरह को रखकर तथा द्रव्य रखकर एवं आरती उतारकर करनी चाहिये। उपयुक्त सभी उपाय देवद्रव्य की वृद्धि के ही हैं, परन्तु वे सभी प्रत्येक समय में एक ही पद्धति से प्रचलित नहीं रहे तथा रहने के भी नहीं, क्योंकि कितने ही परिवर्तन श्रीसंघों ने अपनी सूझबूझ से किए हैं, जैसे इन्द्रमालादि के रिवाजों में श्रीसंघ के द्वारा हु परिवर्तन