________________ / 58 ) ही रोकड इन्कम (आय) भी प्राप्त होती ही रहती है। इसी प्रकार पूर्व प्रदेश के भी कई मंदिर ऐसे हैं जिनकी व्यवस्था मंदिरों को मिले हुए गाँवों अथवा बंधे हुए करों-टेक्सों (लागाओं) से चलता है। किन्तु ग्राम, ग्रास अथवा लागा, प्रत्येक मन्दिर के लिये मिले ही हो अथवा मिल सकते हो ऐसा कुछ नहीं है। इसी कारण किसी भी मंदिर में चाहे जैसे उचित रिवाज मंदिर के निर्वाह हेतु बना दिये गये हो, उनमें परिवर्तन हो ही नहीं सकता है, ऐसा कहना नितांत असत्य है। कई बार ऐसा भी होता है कि एक रिवाज किसी स्थान पर किसी कारणवश चालू कर दिया गया हो। दूसरे गांववालों ने उसका अनुकरण कर दिया, फिर तीसरे ने, चौथे ने कर दिया और इस प्रकार वर्षोपरान्त वह रिवाज सर्वत्र प्रवेश कर गया। परिणामतः वह रिवाज मानों अनादिकाल से ही चला आ रहा हो। इस प्रकार की धारणा हो गई। दृष्टान्तस्वरूप-स्वप्न उतारने की परम्परा। स्वप्न उतारने की परंपरा नूतन ही है। यह बात सबको मान्य है, कोई मना नहीं कर सकता। इसका पुष्ट प्रमाण यही है कि पहले कल्पसूत्र का वाचन सिर्फ साधु करते थे और साध्वियां श्रवण