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________________ है कि कितने ही धार्मिक रीति-रिवाजों में यदा-तदा परिवर्तन होता रहता है। यह बात किसी भी अनुभवी व्यक्ति के ज्ञान से बाहर नहीं है। इस प्रकार उन धार्मिक अनुष्ठानों में परिवर्तन करने से प्रभु-आज्ञा का : भंग भी नहीं होता है क्यों कि प्रभु ने अपने मुखारविंद से ही द्रव्य - क्षेत्र काल- भाव को ध्यान में रखकर ही धार्मिक क्रिया-कलापों को करने की आज्ञा दी है / उस आज्ञा को ध्यान में रखकर ही कारण विशेष के उपस्थित होने पर महान् आचार्य एवं श्रीसंघ उन नियमों में परिवर्तन करते आये हैं। इस बात की पुष्ट्यर्थ अनेक उदाहरण भी मौजूद (तैयार) हैं। उनमें से तीन-चार उदाहरणों को पेश करूंगा। _प्रथम-हम सभी जानते हैं कि पूर्व में सभी साधु श्वेत वस्त्र ही रखते थे, परन्तु जब से साधु-सन्त शिथिलाचारी हो गये और सत्यासत्य को पहचानना मुश्किल हो गया तब शिथिलाचारियों और त्यागीसंवेगी साधुओं की पहिचान के लिए श्रीमान् सत्यविजय पंन्यास के आधिपत्य में वस्त्रों को रंगने का क्रम चाल हुआ। द्वितीय-प्रथम साधु लोग क्षेत्रों के गुणों को ध्यान में रखकर चातुर्मास करते थे जबकि आजकल
SR No.004448
Book TitleDevdravya Sambandhi Mere Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmsuri
PublisherMumukshu
Publication Year
Total Pages130
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size6 MB
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