________________ पत्रिका नं.-२ बोली के द्रव्य को साधारण खाते में नहीं ले जा सकते हैं क्या ? समयानुसार संसार में सदैव प्रवृत्ति-निवृत्ति होती ही रहती है। पहले ऐसे कई रीति-रिवाज थे जो पूर्ण जोश से चलते थे, परन्तु उनका, अब नाम-निशान भी देखने को नही मिलता है, तथा ऐसे अनेक रीति-रिवाज जो सैकड़ों या हजारों वर्ष पूर्व छद्मस्थों की कल्पना में भी नही होंगे, वे समय की प्रबलता से अब प्रचलित हो गये हैं / समय का प्रभाव ही ऐसा है कि मनुष्यों की बुद्धि और विचारों का परिवर्तन होता रहता है। हाँ, जो कुदरती रीति-रिवाज हैं उनमें परिवर्तन नही होता है। हाथ से खाने का जो कुदरती नियम है उसमें परिवर्तन नहीं हो सकता है अर्थात् पैर से खाया नहीं जा सकता। अनादिकाल से चले आ रहे इन प्राकृतिक नियमों में कभी परिवर्तन हुआ नहीं और होगा भी नहीं / परिवर्तन तो उन्हीं रीति-रिवाजों में हो सकता है जिन रीति-रिवाजों को मनुष्यों ने बनाया है। धार्मिक रीति-रिवाज भी मनुष्यकृत ही हैं। यही कारण