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________________ इस रचना के मुख्य प्रेरक थे मेवाड़ के महाराणा प्रताप के अत्यन्त विश्वस्त राजभक्त, और देशभक्त, राजस्थानीय महाजनों के मुकुट-समान भामाशाह के भाई ताराचन्द। सादड़ी नगर उस समय मेवाड़ राज्य की दक्षिण-पश्चिमी सीमा का केन्द्रस्थान था। ताराचन्द वहाँ पर महाराणा प्रताप के शासन का एक विशिष्ट स्थानिक अधिकारी था। कवि हेमरत्न भामाशाह और ताराचन्द के धर्मगुरुओं के शिष्य-समूह में से एक प्रमुख व्यक्ति थे। यह रचना उदयपुर राज्य और राजवंश से विशिष्ट सम्बन्ध रखने वाले ओसवाल जाति के कावड़िया गोत्रीय ताराचन्द के आदेश और अनुरोध से बनाई गई है। ताराचन्द, जैसा कि ऊपर कहा गया है, भामासाह का छोटा भाई था। महाराणा प्रताप का वह विश्वस्त राज्याधिकारी था। भामासाह के साथ वह भी प्रसिद्ध हल्दीघाटी के युद्ध का एक अग्रणी योद्धा और सैन्य संचालक था। उसने चित्तौड़ के राजवंश की रक्षा के निमित्त अनेक प्रकार से सेवा की थी, अत: उसके मन में चित्तौड़ के गौरव की गाथा का गान करवाने का उल्हास होना स्वाभाविक ही था। (पृष्ठ 7) यह पुस्तक 'गोरा बादिल चरित्र' के नाम से मुनिजी द्वारा सम्पादित होकर राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर से सन् 1968 में प्रकाशित हो चुकी है। इस कृति के आधार से निश्चित तो नहीं किन्तु यह सम्भावना की जा सकती है कि वीर भामाशाह कावड़िया भी पूर्णिमा गच्छीय थे। ___ कवि की अभयकुमार चौपई, महीपाल चौपई (र. सं. 1636), शीलवती कथा (र. सं. 1613, पाली), लीलावती कथा (र. सं. 1613), रामरासौ और सीता चरित्र आदि नाम की भी अन्य रचनाएँ उपलब्ध हैं। इन कृतियों का उल्लेख मुनिजी ने 'गोरा-बादल चरित्र - एक पर्यालोचन', पृष्ठ 7 में किया है। प्रस्तुत है प्रश्नोत्तर काव्य भावप्रदीपः // ई० // श्रीगणेशाय नमः॥ श्रीमते 'विश्वविश्वैकभास्वते शाश्वतद्युते। केवलज्ञानिगम्याय नमोऽनन्ताय तेजसे // 1 // 'प्रभूतभूतिप्रविभूषिताङ्गकः, प्रध्वस्तकामः समकामदः सदा। प्रभुर्विभूनामपि मंजुलार्गलः, स मङ्गलं रातु वृषध्वजो विभुः॥ 2 // पञ्चाननाङ्कितजगत्प्रभुपादसेवी, श्रीमद्विलोलविकसत्करपुष्करानः। विघ्नौघपाटनपटुः कटुकष्टकृट् च, निर्मातु मङ्गलगणं गुणवान्गणेशः॥३॥ नमः समाजस्थितसज्जनेभ्यः प्रसन्नचित्ताननपङ्कजेभ्यः। परप्रणीतान्यपि ये वचांसि, स्वभावभेदैः परिभूषयन्ति // 4 // श्रीविक्रमाख्ये नगरे गरिष्ठः, प्रज्ञाप्रपञ्चेऽस्तितमां पटिष्ठः। मन्त्रप्रयोगे प्रथितप्रतिष्ठः, श्रीकर्मचन्द्रः सचिवो वरिष्ठः // 5 // भावपटीप.. 1. ब. समस्त। 2. ब. प्रचुर। 3. ब समग्रं सकलं सममिति / 4. ब. मंगुलशब्दो देश्यः, मंगुलस्य अशोभनस्य अर्गलेति, कल्याण:। 5. ब. कट्वकार्यो त्रिपु मत्सरतीक्ष्णगोरित्यमरः। 80 लेख संग्रह
SR No.004446
Book TitleLekh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2011
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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